Reality of Radha Soami Lineage - Who Is God ?

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Friday, November 16, 2018

Reality of Radha Soami Lineage

Radha Swami Panth Ki Kahani - Unhi Ki Jubani

राधास्वामी पंथ का प्रवर्तक श्री हज़ूर शिवदयाल जी महाराज को माना जाता है जिनका जन्म आगरा शहर की मुहल्ला पन्ना गली में 25 अगस्त 1818 को हुआ| शिवदयाल जी महाराज के माता-पिता श्री तुलसी साहेब हाथरस वाले संत जी के भक्त थे| श्री तुलसी साहेब हाथरस वाले के कोई गुरु नहीं थे|
इन्ही तुलसी साहेब हाथरस वाले के वचन सुना करते थे| शिवदयाल जी बिना गुरु धारण किये हुए हटयोग किया करते थे| 2-2, 3-3 दिन तक बाहर नहीं निकलते थे| इस प्रकार लगभग 15  दिन तक करते रहे बिना गुरु धारण करे हुए| शिवदयाल जी महाराज हुक्का पीते थे| मरने के बाद भी अपनी शिष्य बुक्की में प्रवेश करके हुक्का पीते थे| राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल जी परमात्मा को निराकार बताते है| उनका मानना  की आत्मा सतलोक में जाकर लीन हो जाती है जैसे समुंदर में बूंद मिल जाती हैं। 


क्या गुरु के बिना भक्ति नहीं कर सकते?

भक्ति कर सकते हैं परन्तु व्यर्थ प्रयत्न रहेगा|

राधास्वामी पंथ शहर आगरा, पन्नी गली निवासी श्री शिवदयाल सिंह जी से चला है। राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक श्री शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था। प्रमाण: पुस्तक "जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज" के पृष्ठ 28 पर कृपया देखें..


 परमात्मा का विधान है की गुरु बिना मोक्ष नहीं, इसका प्रमाण सूक्ष्मवेद में भी मिलता है|

कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान |
गुरु बिन दोनों निष्फल है, पूछो वेद पुराण ||

कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा,उन्हों भी गुरु कीन्हा |
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ||

कबीर, राम कृष्ण बड़े तिन्हूं पुर राजा | 
तिन गुरु बंद कीन्ह निज काजा ||  

गुरु धारण किए बिना यदि नाम जाप करते हैं या दान देते हैं, वे दोनों ही व्यर्थ हैं| यदि सदेह है तो आप जी अपने वेदों तथा पुराणों मैं प्रमाण देख सकते हैं| पुराणों मैं प्रमाण है की श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राज-काज मे गुरु वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर कार्य करते थे| श्री कृष्ण जी ने भी ऋषि सांदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया तथा कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरु श्री दुर्वासा ऋषि जी थे|

परमेश्वर कबीर साहेब जी हमें समझाते हैं की श्री राम जी और श्री कृष्ण जी से बड़ा अर्थात समर्थ आप जी किसी को नहीं मानते हो| वे तीन लोक के स्वामी है परन्तु उन्होंने भी गुरु बनाकर अपनी भक्ति की तथा अपना मानव जीवन सार्थक किया|

जब श्री राम तथा श्री कृष्ण जो तीन लोक के स्वामी है उन्होंने भी गुरु बनाये थे फिर हम तो तुच्छ जीव है| गुरु बनाये बिना हमारा मानव जीवन कभी सफल नहीं हो सकता| शिवदयाल जी ने गुरु नहीं बनाये थे फिर उनका मोक्ष कैसे हो सकता है| गुरु के बिना देखा-देखी, कही-सुनी भक्ति को लोकवेद अनुसार भक्ति कहते हैं|

कबीर, गुरु बिन काहु न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा छुड़े मूढ़ किसाना |
कबीर, गुरु बिन वेद पढ़ै जो प्राणी, समझै न सार रहे अज्ञानी || 

इसलिए सच्चे गुरु से दीक्षा लेना चाहिए तथा वेद शास्त्रों का ज्ञान पढ़ना समझना चाहिए जिससे सत्य भक्ति की शास्त्रानुकूल साधना करके मानव जीवन धन्य हो जाये|



शिवदयाल जी हुक्का पीते थे| 

शिव दयाल जी हुक्का पीते थे जबकि हुक्का पीना महापाप है फिर भी पीते थे| क्या यह एक गुरु के लक्षण हो सकते हैं??






कबीर साहेब जी कहते हैं -

भांग तंबाकू, छूतरा, आफू, शराब।।
 कहे कबीर कैसे करे बंदगी, यह तो करें खराब।।


मरने के बाद भी शिवदयाल जी ने हुक्का पीना नहीं छोड़ा| मृत्यु के बाद भी शिवदयाल जी अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश करके, पहले की तरह हुक्का पीते थे। और अंत तक बुक्की के शरीर में रहें। ऐसे लक्षण तो भूत व पितरों के होते है| किसी भी मोक्ष प्राप्त संत क इतिहास में नहीं मिलती| जब जिस पंथ के मुखिया ही बिकार का त्याग नहीं कर सके तो अन्य अनुयाई कैसे बिकार रहित हो सकते हैं|  


अब मानव समाज विचार करें कि जब शिवदयाल जी खुद भूत बने, और यदि गुरु ही भूत बनेगा तो शिष्यों को मुक्ति कहां से दिलाएगा। इसलिए उस पंथ क भक्ति मार्ग से मोक्ष प्राप्ति की बात कहना ही व्यर्थ है| 

कबीर साहेब ने कहा है कि -
सतगुरु पुरुष कबीर है, चारों युग प्रवाण।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।। 


 क्या शिवदयाल जी को वेदों का ज्ञान था?

राधास्वामी पंत में जो पांच नाम दिए जाते है वे काल के जाप हैं| घट मैं हाथरस तुलसीदास जी ने कहा है "पांचों नाम काल के जानो"
घट रामायण पहिला भाग प्रष्ट 27 में स्पष्ट है की पांचों नाम तो काल के हैं|

संत रामपाल जी महाराज ने सर्व संगत को अवगत करवाया है की इन पांचों नामों से भिन्न दो नाम अन्य हैं| 
  1. आदिनाम जिसे सारनाम भी कहते हैं| वह और कोई मंत्र है जो उपदेशी को गुरु द्वारा दिया जाता है|
  2. सतनाम है (सतनाम कहते हैं सच्चे नाम को| सतनाम-सतनाम जाप करने का नहीं है|)

जिन दोनों नामों आदिनाम अर्थात सरनाम तथा सतनाम(जो दो मन्त्रों का योग है) का राधास्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरु अर्थात सच्चा सौदा पंथ वाले संतों को पता नहीं है| इसलिए तो पुस्तक सार वचन वार्तिक पृष्ठ 3 पर सत्संग वचन 4 मैं स्वयं श्री शिवदयाल जी महाराज सतनाम, सारशब्द अर्थात आदिनाम तथा सतशब्द, सतपुरूष, सतलोक को एक बताया है| यह भी कहा है की राधास्वामी पद सबसे ऊंचा मुकाम (स्थान) है| यही सच्चे मालिक का नाम है| इसे ला मकान जिसको कोई स्थान भी नहीं कह सकते फिर लिखा है इसी को कहते हैं|
भवार्थ यह है की शिवदयाल जी को स्वयं नहीं पता की आखिर सतनाम है क्या?
        "स्थान है"
        "भगवन है"
        "मंत्र का जाप"
      या "कोई पशु है"



राधास्वामी पंथ की पुस्तक "सन्तमत प्रकाश भाग-4" पृष्ठ 261-62 पर नानक जी की और कबीर जी की वाणी का प्रमाण देकर कहा है कि :-

सोई गुरु पूरा कहावै जो दो अखर का भेद बतावै। 
एक छुड़ावै एक लखावै, तब प्राणी निज घर जावै।। 

जै तू पढ़या पंडित बिन दोय अक्षर बिन दोय नावां।




कबीर जी की वाणी -
कह कबीर अक्षर दुय भाख।
होयगा खसम त लेयगा राख||

वास्तविक सतनाम का मंत्र 2 अक्षरों का है जो ये वाणिया सिद्ध कर रही है जो इन राधास्वामी वालो को पता नही है। इसलिए कोरा अज्ञान जनता को प्रदान कर दिया और अब भूत बने फिर रहे है। अब आप ज्ञान को समझिए और इन नकलियो से अपना पीछा छुड़वाईये।



शिवदयाल जी का ज्ञान गीता, वेदों पर आधारित नहीं है पूरा ज्ञान शास्त्र विरुद्ध और असत्य है|
शिवदयाल जी के सत्संग वचनों से पता चला की उस पंथ में क्या ज्ञान प्रचार किया जा रहा है| उनका अपना ज्ञान सर्व निराधार है| गीता जी तथा वेदों के ज्ञान को स्वीकार नहीं करते सर्व अनुयाईयों का जीवन व्यर्थ क्र रहे हैं| जो थोड़ा बहुत लाभ हवन यग (देशी घी की ज्योति जो सर्व घरों में जलाई जाती थी) से होता था, वह भी बंद करवा दी तथा कहते हैं की हम तो शरीर में वास्तविक ज्योति जगाते हैं| बाहर की ज्योति (हवन) की आवश्यकता नहीं| घट रामायण जो तुलसी साहेब हाथरस वाले के द्वारा लिखी है भाग पहला पृष्ठ सं.30 पर लिखा है की शरीर (घट) अर्थात पिंड में ही सोलह द्वार हैं| सर्व वस्तु जो देखी है वह पिंड में ही है| जबकि पूज्य परमात्मा कबीर साहेब जी शब्द "कर नैनों दीदार महल में प्यारा है" की कली सं.31-32 में कहा है की जो पिंड (घट) में दिखाई दे रहा है वो नकली सतलोक आदि है| यह तो माया ने ऊपर के लोकों की नकल की है, जो झूठी है| हमारा वास्तविक सतलोक आदि तो पिंड (घट/शरीर) से बाहर है|
सर्व संगत से प्रार्थना है की इन नकली गुरुओं से अपना पीछा छुड़वाएँ और पूर्ण संत सतगुरु रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपना मानव जीवन सार्थक करें तथा मोक्ष प्राप्त करें|    Interview Of Ex- Radhasoami Preacher | Rohi Saindane



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